“कब तक बोझ संभाला जाए,
कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि अपनी सुरक्षा के लिए युद्ध करना ही पड़ता है। आजकल हमारे देश में भी कुछ ऐसा ही माहौल बन रहा है। सरकार ने मॉक ड्रिल का ऐलान कर दिया है और सोशल मीडिया पर लोग ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं जैसे युद्ध कोई जश्न मनाने वाली चीज हो।
लोग ये नहीं समझ पा रहे कि युद्ध का मतलब सिर्फ और सिर्फ तबाही होता है। एक बार अगर कोई देश जंग में उतर गया, तो वहां से बाहर निकलने में बरसों लग जाते हैं।
आज इज़राइल और ग़ाज़ा का हाल देख लीजिए — इतना टेक्नोलॉजी, हथियार और इंटरनेशनल सपोर्ट होने के बावजूद इज़राइल एक छोटे-से इलाके से पूरी तरह निपट नहीं पाया। रूस और यूक्रेन की जंग भी अभी तक खत्म नहीं हुई, जबकि रूस दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताकत है।
अब युद्ध सिर्फ मैदान में नहीं लड़े जाते, बल्कि सोशल मीडिया, इंटरनेट, साइबर अटैक, इकॉनॉमी, ट्रेड और जीडीपी तक इसका असर जाता है। और सबसे ज़्यादा कीमत आम जनता चुकाती है।
हमारे एक पड़ोसी देश की बात करें, तो उसके पास खोने को वैसे भी कुछ नहीं है — वो तो पहले ही बर्बादी की कगार पर बैठा है। हमारे यहां एक कहावत है — “जिसके पास कुछ नहीं होता, उसे डर भी नहीं होता।” लेकिन हमने जो सालों में मेहनत से बनाया है, उसे खोने का डर ज़रूर है।
इसलिए बेहतर यही है कि इस मसले को सरकार अपने कूटनीतिक तरीकों से हैंडल करे। सरकार समझदार है, और फिलहाल हमें उनके फैसलों पर भरोसा रखना चाहिए। जो लोग कुर्सियों पर बैठे हैं — नेता, अफसर — उनके पास शायद ज़्यादा जानकारी और ज़मीनी सच्चाई है। उन्हें तय करने दीजिए कि क्या सही रास्ता है।
हमारी जिम्मेदारी यह है कि युद्ध का माहौल न बनाएं, न इसे सेलिब्रेट करें। बल्कि डरें, सोचें और दुआ करें कि ऐसा दिन कभी ना आए।