सुबह आंख खुली तो ट्रेन मुरादाबाद के आगे तक पहुंच चुकी थी लेकिन भारतीय रेलवे के अघोषित नियमानुसार ट्रेन सिर्फ 3 घंटे की देरी से चल रही थी।
पहले हम लोगों ने तय किया था कि सुबह पहुंच कर दिल्ली भी घूमेंगे क्योंकि हमारे पास पूरे दिन का समय है। क्योंकि आगे उधमपुर की ट्रेन रात 8:00 बजे से पुरानी दिल्ली स्टेशन से थी। लेकिन ट्रेन ने हमें लगभग दोपहर 12:00 बजे आनंद विहार पहुंचाया तो हम लोगों ने अपने दिल्ली घूमने के प्लान में कटौती कि और सबसे पहले भूख मिटाने की व्यवस्था में जुट गए।
आनंद विहार
दिल्ली को जायके का शहर कहा जा सकता है। हालांकि मैंने सुना है इंदौर खाने-पीने के मामले में दिल्ली से बेहतर है लेकिन मुझे दिल्ली भी कहीं से कम नहीं लगता है।
दिल्ली उतरकर हमने छोले भटूरे का स्वाद लेने का मन बनाया। दिल्ली में मेरे सबसे फेवरेट छोले भटूरे मिलते हैं पहाड़गंज में सीताराम दीवान चंद छोले भटूरे। छोले भटूरे के शौकीनों के लिए यह बड़ा नाम है। हम ट्रेन से आनंद विहार उतरने के बाद थोड़ा फ्रेश हुए फिर पहुंचे पहाड़गंज छोला भटूरे खाने।
मैं तो यहां पहले कई बार खा चुका हूं लेकिन मेरे बाकी साथियों के लिए यह नई जगह थी। लेकिन टेस्ट ने उन दोनों को भी निराश नहीं किया और दो भटूरों में ही सारा भूख रफूचक्कर हो गया।
सीताराम दीवान चंद के छोले भटूरे
अब हमारे पास 5-6 घंटे बचे हुए थे लेकिन हम कहीं दूर घूमने नहीं जाना चाहते थे। क्योंकि दिल्ली का ट्रैफिक कहां फंसा दे और आपकी ट्रेन मिस हो जाएं यह रिस्क भला कौन लेने जाए! कश्मीर के जन्नत को छोड़कर इस दिल्ली के ट्रैफिक जाम में कौन फसना चाहे।
अतः हमने तय किया कि यहां से सीपी चलेंगे। फिर हम लोगों ने थोड़ा सीपी का चक्कर लगाया और फिर पहुंचे चांदनी चौक। चांदनी चौक अगर आप पिछले 3-4 सालों में नहीं गए हैं तो जाइए, चांदनी चौक एकदम बदल गया है, एकदम चकाचक हो गया है।
यहीं बगल में कैमरे के शौकीनों के लिए सबसे बड़ा मार्केट कूचा चौधरी मार्केट भी है, जहां से मैंने अपने कैमरे के कुछ असेसरीज खरीदे। हालांकि चांदनी चैक तो दुनिया के सबसे बड़े मार्केट में से एक है। यहां आपको हर चीज मिल सकती है, बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी।
चूंकि पुराना दिल्ली रेलवे स्टेशन, चांदनी चौक और जामा मस्जिद आसपास ही है तो उसके बाद हम 3 तीनों पहुंचे जामा मस्जिद। लाला किला भी सामने था लेकिन वो स्वतंत्रता दिवस की तैयारी के लिए बंद हो जाता है 1 महीने पहले ही, तो वहां का प्लान भी कैंसिल करना पड़ा। हालांकि मैं तो दिल्ली लाल किला कई बार जा चुका हूं लेकिन साथियों का मन था। अब जब जामा मस्जिद पहुंच ही गए हमने सोचा क्यों ना डिनर में थोड़ा पुरानी दिल्ली के स्वाद का तड़का लगाया जाए।
उसके बाद थोड़ा-बहुत जामा मस्जिद में समय बिताने के बाद लगभग 6:00 बजे हम पहुंचे पुरानी दिल्ली मटियामहल के अल यामीन रेस्टोरेंट्स। यहां मैं पहली बार गया था चूंकि मेरे कजिन सैफ को पुरानी दिल्ली के नॉनवेज का जायका लेना लेना था जिसके बारे में उसने बहुत सुन रखा था। हालांकि यह बात सही भी है कि नॉनवेज खाने वालों के लिए पूरे नार्थ इंडिया में लखनऊ अमीनाबाद और पुरानी दिल्ली मटियामहल से बेहतर शायद ही कोई जगह हो।
अलयामीन में हमने नॉन वेज प्लैटर की जो दावत उड़ाई वह ताउम्र याद रहेगी। चूंकि शुभम एक माह के लिए शाकाहारी था क्योंकि सावन का महीना चल रहा था अतः उसके लिए अलयामीन में ही शाकाहारी प्लैटर की भी व्यवस्था थी।
खाने के बाद शुभम को ‘मोहब्बत का शरबत’ भी पीना था फिर उसकी भी तलाश पूरी हुई और सैफ और शुभम ने मिलकर मोहब्बत का शरबत भी चखा। मेरे पेट में अब तनिक भी जगह नहीं थी अतः आज के दिन खाने पीने पर विराम लगा दिया गया।
अल यमीन का फेमस नॉनवेज प्लैटर
यहां हम लोगों को खाते पीते 7:15 बज गए। जब घड़ी पर नजर गई तो फिर भाग कर हम लोग पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां पर मिस्टर प्रेसिडेंट पहले पहुंच कर है सभी का इंतजार कर रहे थे। अब उन्होंने भी आधिकारिक रूप से इस यात्रा को ज्वाइन किया और हम लोग ट्रेन में जाकर अपना-अपना बर्थ पकड़ कर सो गए। दिनभर की थका देने वाली यात्रा के बाद हिचकोले खाते ट्रेन में जो नींद आई वो जम्मू जाकर ही खुली।
जब नींद खुली तो सबके फोन से नेटवर्क गायब हो चुके थे। यह इस बात की तस्दीक थी कि हम जम्मू कश्मीर में प्रवेश कर चुके हैं। ट्रेन के विंडो से छोटी छोटी पहाड़ियां और जगह जगह झरने दिखने लगे थे। ट्रेन पहले जम्मू पहुंची फिर उधमपुर।
उधमपुर रेलवे स्टेशन
उधमपुर हमसब लगभग 9 बजे पहुंचे। उधमपुर का रेलवे स्टेशन एकदम शहर से बाहर है। कोई आबादी नहीं स्टेशन के पास। ट्रेन से उतरकर हम लोग बाहर निकले थोड़ी दूर पर किसी तरह एक मिनी बस मिल गई जो एमएच चौक तक हमें ले गई।
एमएच चौक का पूरा नाम मिलिट्री हॉस्पिटल चौक है। यहीं से बनिहाल या फिर रामबन के लिए सवारीगाड़ी मिलती हैं। यह सवारी गाड़ी टाटा सुमो भी हो सकती है और बस अथवा टेंपो ट्ररवेलर भी।
एमएच चौक
उधमपुर उतरने के बाद पहली बार मैंने इतना हैवी मिलिटराइज्ड एरिया देखा। जगह-जगह सेना के जवान बंदूक लिए खड़े थे, बड़ी-बड़ी बख्तरबंद गाड़िया सड़कों पर दिखाई दे रही थी।
एचएम चौक पर ही हम पेड वासरूम की सुविधा उपलब्ध है वहीं हम लोगों फ्रेश हुए, चाय पी और टेंपो ट्रेवेलर में सवार होकर बनिहाल के लिए निकले। उधमपुर में उम्मीद के अनुसार बनिहाल के लिए ज्यादा साधन नहीं उपलब्ध है। पूछने पर लोगों ने बताया कि कश्मीर जाने वाले जम्मू से ही डायरेक्ट बनिहाल चले जाते हैं। बहुत कम लोग उधमपुर आते है।
खैर उधमपुर से यात्रा शुरू हुई। इस यात्रा एनएच44 पर होती है। चुकी उसी समय अमरनाथ यात्रा चल रही थी इसलिए हम लोगों को रास्ते में कॉनवाय के गुजरने तक का एक घंटे इंतजार करना पड़ा। फिर आगे लैंड स्लाइड में भी हम लोग थोड़ी देर फंसे रहे। धीरे धीरे चलते चलते 2 बजे हम लोग बनिहाल पहुंच ही गए।
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