गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

ईद के मेलें में खुद्दारी तलाशता विनय


कल ईद थी वहीं सेवइयों वाली ईद। मैं अपने गांव गया हुआ था। नमाज़ पढ़ कर ईदगाह से बाहर निकले तो सभी बचपन वाले दोस्त मिल कर मेले का मुआयना करने निकल पड़े और सभी को मिली ईदी के अनुपात में ‛तुम ये खिलाओ तुम वो खिलाओ’ वाला दौर शुरू हुआ। ऐसा करते हुए हम सब मेले के अंतिम छोर तक आगये।

यहाँ मुझे विनय दिखा जो सबसे किनारे बैठा मेले को निहार रहा था, शायद वह मेले को नही मेले से आने वाले किसी ग्राहक को देख रहा था। उसके आगे कुछ खरबूजे थे जिसे वह ‛फूट’ बता रहा था। लेकिन ईद के दिन 'फूट’ कौन खरीदता है? सब रंगीन गुब्बारे, खिलौने, चाट फुल्की, चाउमीन, आइस क्रीम, पान आदि में ही व्यस्त थे।

मैं ना जाने क्यों विनय तरफ खिंचता चला गया। वो मेले में आया जरूर था लेकिन मेले का हिस्सा ना बन पाया था। पास जाकर मैंने उससे आहिस्ता से पूछा क्या बेच रहे हो बाबू? वो मुस्कुराते हुए बोला “भैया फुट है, ले लीजिए, खेत से तोड़ के लाएं हैं, ताजा है।” शायद मेरे बाबू कहे जाने पर वह मुस्कुरा रहा था क्योंकि अमूनन ऐसे ‛दुकान’ लगाने वालों से लोग कठोरता से ही बात करते हैं।

मैं उसके सामने घुटने पर बैठ गया और उससे बातें करने लगा। मैंने आगे पूछा “इतना किनारे क्यों दुकान लगाए हो?” उसने कहा “भइया थोड़ा लेट हो गया आने में, उधर सब जगह भर गया तो इधर लगा लिए।” फिर हमने पूछा “कितना बेच दिए सुबह से?” इस सवाल पर विनय थोड़ा उदास हो गया और बोला “अभी तो एक भी नही बिका भइया आप ले लीजिये, बहुत अच्छे हैं फूट आप को सस्ता भी देदूँगा।” शायद उसे लगा था मैं सिर्फ उससे बातें करने ही आया हूँ।

मैंने आगे पूछा पढ़ते हो? वो खुश हो गया, उत्साह से बोला हां 5th में पढ़ता हूँ। चूंकि हिंदी मीडियम से पढ़ने वाले सभी पांच या पांचवी ही बताते हैं ऐसे में विनय का ‛फिफ्थ’ बताना खुद में अनोखा था। मैंने उससे पढ़ाई के बारे में और पूछा तो उसने इंग्लिश में पोएम सुनाया, टेबल सुनाया और गणित के कुछ सूत्र बताये।

आगे उसने बताया कि कैसे उसके पिता मुंबई में कमाते हैं लेकिन पेट भर का नही कमा पाते हैं इसलिए माँ खेतों में सब्ज़ियां उगाती है और बाजार में बेचती है। लेकिन आजकल विनय की छुट्टियाँ चल रहीं हैं, इसलिये वह माँ का हाथ बटाने के मकसद से यहाँ मेले में अपनी दुकान लगाने आया था।

मैंने उसे मेले का आइसक्रीम आफर किया तो मुस्कुरा कर उसने मना कर दिया और फिर बोला भइया फूट ले लीजिये, चाट आइसक्रीम से अच्छा है। मैंने उसे कुछ पैसे दिए और कहा की फूट तो अभी नही चाहिए क्योंकि आज ईद है तुम पैसे रख लो। लेकिन उसने जबरदस्ती एक फूट पकड़ा दिया और बोला भैया ले जाइए खा के देखियेगा।

विनय के खुद्दारी मुझे बहुत पसंद आई। उसी मेले में उसकी उम्र के दुगने तिगुने उम्र के लोग ईद के नाम पर भीख मांग रहे थे और उसी भीख के पैसे से 200-300 जुटा लेने का बाद आराम से चाट फुल्की आइस क्रीम खा रहे थे। लेकिन एक विनय था जो फूट बेचने आया था और वही काम कर रहा था।

समाज मे किसी भिखारी से पहले, वेटर को टिप देने से पहले, ऑनलाइन डोनेशन देने से पहले ऐसे खुद्दार लोगों की मदद करनी चाहिए इससे इनका हौसला बढ़ता है।

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

गुरेज घाटी : जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर का सबसे खूबसूरत हिस्सा

गुरेज वैली कश्मीर में पड़ने वाली खूबसूरत, बेहद शांत और भीड़भाड़ से दूर बसी एक शानदार घाटी है। जो अभी भी आधुनिकता से दूर अपने प्राकृतिक सौंदर्य को अपने में समेटे हुए है। सर्दियों में इस घाटी को श्रीनगर से जोड़ने वाला राजदान पास पूरी तरह से बंद रहता है। 

हालांकि अब बीआरओ पहले से ज्यादा सक्रिय है तो अब ये पास मुश्किल से दिसंबर से मार्च तक ही बंद रहता है। जिसका समय समय पर न्यूज में अपडेट आता रहता है।

यह पूरी घाटी LOC के आसपास बसी हुई है। तो आपके यहां पर अतिरिक्त सुरक्षा जांच से गुजरना होगा और अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। कई जगहों पर फोटोग्राफी की परमिशन नहीं है। हालांकि हमारे सेना के जवान बेहद कोपरेटिव और मिलनसार है तो आपको कहीं भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आप यहां पर पहुंच कर बेहद रोमांच का अनुभव करेंगे।




2017 से पहले यह घाटी पर्यटकों के लिए खुली नहीं थी तब सिर्फ यहां के लोकल लोग और सेना से जुड़े लोग ही यहां पर जा सकते थे। 2017 में इस क्षेत्र को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। यही वजह है कि गुरेज घाटी अभी भी भीड़ भाड़ से कोसो दूर है और आपको सीमित सुविधा ही उपलब्ध हो सकेंगी।

कब जाएं?

अगर आपको हरे भरे पहाड़ पसंद हैं तो यहां जाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर तक का है। उस समय घाटी पूरी तरह से खुली होती है और पहाड़ हरियाली से ढके होते हैं।

आप अक्टूबर में भी जा सकते हैं पतझड़ के मौसम में इस घाटी की अलग ही खूबसूरती होती है।

कैसे जाएं?
यहां जाने के लिए सबसे पहले आपको श्रीनगर पहुंचना होगा। श्रीनगर पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं या तो आप अपने शहर से श्रीनगर की फ्लाइट ले लीजिए और श्रीनगर लैंड करिए। इसका किराया घटता बढ़ता रहता है। आप कब जा रहे हैं और कितने दिनों पहले टिकट बुक कर रहे हैं इस पर तय होता है। 

अगर आपने 1 महीने पहले टिकट बुक कराया है तो दिल्ली से सामान्यतः किराया ₹4000 तक होता है। गोरखपुर से यह किराया ₹8000 तक हो सकता है।

दूसरा तरीका है सड़क और रेल मार्ग

अगले साल तक श्रीनगर तक सीधी रेल सेवा शुरू होने की उम्मीद है लेकिन फिलहाल उधमपुर तक ही डायरेक्ट रेलवे नेक्टिविटी है।

आप रेलवे का टिकट लेकर उधमपुर या जम्मूतवी तक जा सकते हैं। वहां से आपको श्रीनगर की बस, प्राइवेट टैक्सी या फिर शेयर्ड सुमो मिल जाएगी। 

रेलवे का किराया आपके शहर से जम्मू तक का आपको चेक करना होगा। गोरखपुर से स्लीपर क्लास में ₹700- 800 के लगभग किराया होगा। 

जम्मू या उधमपुर से आपको बस या शेयर्ड सुमो या फिर प्राइवेट टैक्सी मिल जाएगी जो आपको श्रीनगर तक पहुंचा देगी। शेयर सुमो लगभग ₹1000 प्रति व्यक्ति, बस लगभग ₹800 प्रति व्यक्ति और प्राइवेट टैक्सी 6-10 हजार प्रति कैब तक चार्ज कर सकती है।



रेल मार्ग द्वारा
अब बताते हैं तीसरे तरीके के बारे में जो सबसे शानदार और किफायती तरीका है। अगर आपका बजट कम है या आप मेरी तरह बैकपैकर्स है तो आप इस तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

आपको ट्रेन से उधमपुर पहुंचना होगा। उसके बाद आप ₹20 किराया देकर मिनी बस से MH चौक पहुंच जाएं। MH चौक से आपको बनिहाल के लिए बस या शेयर टैक्सी मिल जाएगी। बस का किराया लगभग ₹250 प्रति व्यक्ति हो सकता और शेयर टैक्सी का लगभग ₹300 प्रति व्यक्ति।
 
बनिहाल से शानदार रेलवे सेवा उपलब्ध है जो खूबसूरत नजारों के बीच से होते हुए ₹45 प्रति व्यक्ति किराया में आपको श्रीनगर पहुंचा देगी। बनिहाल से श्रीनगर के लिए पहली ट्रेन 7:15AM पर तो आखिरी ट्रेन 4:50PM पर है।

पहले दिन आपको श्रीनगर में ही रुकना चाहिए। अगर आपके पास समय है तो कुछ गार्डन घूम लीजिए। श्रीनगर में कई खूबसूरत गार्डन है जैसे मुगल गार्डन, चश्मे शाही आदि। शाम को आप डल लेक और लाल चौक घूम सकते हैं। 

गुरेज जाने के लिए अगले दिन सुबह ही निकलना चाहिए। अगर आप प्राइवेट टैक्सी हायर करना चाहते हैं फिर तो कोई बात नहीं है वह आपके होटल या होम स्टे से ही आपको पिक कर लेंगे। इसका किराया ₹4000 से ₹5000 रुपए प्रतिदिन हो सकता है। यह गाड़ी के साइज और सीजन पर डिपेंड करता है।

लेकिन अगर आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जाना चाहते हैं तो आपको लाल चौक या पंपोर से बांदीपोरा की टैक्सी या बस मिल जाएगी जो आपको ₹100-₹150 रुपए तक चार्ज कर सकती है।

ध्यान रहे आपको किसी भी हाल में दोपहर तक बांदीपोरा पहुंच जाना है। बांदीपुर से आपको गुरेज के दावर कस्बे के लिए शेयर्ड टैक्सी मिल जायेगी जो आपको ₹350 से ₹400 प्रति व्यक्ति में गुरेज के सबसे बड़े टाउन दावर पहुंचा देगी। यहां पहुंचने में 4- 5 घंटे लगते हैं।

बांदीपोरा से दावर तक के रास्ते बेहद मनमोहक हैं। यह रास्ता खूबसूरत राजदान पास से होकर जाता है और अगर आपकी किस्मत सही रही और आसमान खुला रहा तो आपके यहां से नंगा पर्वत दिखाई दे सकता है।

गुरेज में कहां रूके

गुरेज में रुकने के लिए कई ऑप्शन हैं। जिसमे होटल, होम स्टे और किशनगंगा नदी किनारे कैंपिंग शामिल है।

होटल आपको ₹2000 से ₹3000 प्रति कमरे, होमस्टे ₹1000 से ₹1500 प्रति कमरे और कैंप साइट में टेंट 1500 प्रति टेंट पड़ सकता है। यह सीजन के अनुसार थोड़ा ऊपर नीचे हो सकते हैं। एक कमरे में तीन लोग आसानी से रह सकते हैं। एक रूम में चार लोग रुकते हैं तो उसके लिए कुछ पैसे एक्स्ट्रा खर्चने होंगे।

कैसे घूमें?

अगर आप प्राइवेट टैक्सी से गए हैं तो आपको कोई समस्या नहीं होगी आपको प्राइवेट टैक्सी दो दिन में बड़े आराम से पूरा गुरेज घुमा देगी। 

अगर आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमना चाहते हैं तो फिलहाल यह संभव नहीं है क्योंकि उधर बहुत कम आबादी है और दिन भर में बहुत कम गाड़ियां ही आपको देखने को मिलेंगी। आपको वहां पर जाकर प्राइवेट टैक्सी ही करनी पड़ेगी। जिसका चार्ज 3500 से 4000 प्रति दिन हो सकता है।

घूमने के लिए 2 दिन पर्याप्त है। इसमें आप काबुल गली जो की एक छोर का आखिरी हिस्सा है वही बगतोर गांव जो दूसरे छोर का आखिरी हिस्सा है, वहां जा सकते हैं। हब्बा खातून पीक और चश्मा आप जा सकते हैं।
 बाकी पूरी घाटी ही खूबसूरत है कहीं घूमिए।

क्या खाएं?

अगर आप वेजिटेरियन हैं तो यहां पर आपको बहुत ही काम ऑप्शन मिलेंगे। आपको दाल चावल और सलाद मिल जाएगा। कुछ होटल में अब सब्जियां भी मिलने लगी है।

नॉनवेज खाने वालों के लिए यहां कुछ बेहतर ऑप्शन मिल सकते हैं जैसे फिश, चिकन और मटन।

खास बातें - 

पूरे कश्मीर में आप सिर्फ पोस्टपेड सिम ही इस्तेमाल कर सकते हैं। गुरेज में जियो का नेटवर्क बेहतर है। अगर आपके पास पोस्टपेड सिम नहीं है तो आप वहां आधार दिखाकर ले सकते हैं जो 1 से 2 घंटे में एक्टिवेट हो जाता है।

आप किसी भी मौसम में जाएं तो गर्म कपड़े और रेनकोट जरूर लेकर जाएं। आधार कार्ड हमेशा अपने साथ कैरी करें ये अनिवार्य है। कुछ जरूरी दवाइयां साथ रखें। 

सुरक्षा से संबंधित कश्मीर में आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। बस आप नियम का पालन करें। सुरक्षा नियमों का पालन करें आपको इस ट्रिप में बहुत मजा आएगा।

रविवार, 7 अप्रैल 2024

Intro: कश्मीर का सपना पूरा हुआ, कुछ इस तरह हुई तैयारी

घुमक्कड़ लोगों के लिए कोरोना किसी अभिशाप से कम नहीं था। कोविड काल के लंबे समय बाद तक घूमने या यूं कहिए स्वतंत्र रूप से घूमने पर कई पाबंदियां लगी हुई थी। 2022 आते-आते धीरे-धीरे सभी पाबंदियां खत्म होने लगी। उसके बाद हमने भी अपने घुमक्कड़ स्वभाव को दिए गए विराम को वापस लिया और पहाड़ पर जाने का निर्णय लिया। हमारे सामने दो विकल्प थे या तो हम नॉर्थईस्ट जाएं या फिर कश्मीर की तरफ रुख करें। 

चूंकि शुरू से ही मैं ऑफबीट डेस्टिनेशन को पसंद करता आया हूं इसलिए दोनों जगहों के बारे में रिसर्च शुरू की। नार्थ ईस्ट में नागालैंड और मणिपुर के बॉर्डर पर स्थित ज़ुकू वैली और कश्मीर की गुरेज वैली को शॉर्टलिस्ट किया गया।

कश्मीर की गुरेज घाटी

नागालैंड की जुकू वैली

इन दोनों डेस्टिनेशन के फाइनल हो जाने के बाद अब मैंने साथियों की तलाश शुरू की जिनके साथ यात्रा की जा सके। मुझे अकेले ट्रैवल करना पसंद नहीं है। हालांकि कई लोग सोलो ट्रैवलिंग की बात करते हैं लेकिन आज तक मुझे सोलो ट्रैवलिंग का कांसेप्ट समझ में नहीं आया। 

मेरा मानना है कि आप दुख में या खुशी में अपने आसपास लोगों को देखना चाहते हैं ठीक उसी तरह यात्रा में भी आप अपने आसपास अपनी फेवरेट लोगों को देखना ही चाहते हैं।

कई लोगों के प्लान में शामिल होने और एग्जिट करने के बाद आखिरकार हम 4 साथी तैयार हुए। हालंकि इस बीच अनेक लोग इस प्लान में शामिल हुए और सार्वभौमिक नियम की तरह अंत समय में प्लान कैंसिल कर गए।

अब क्योंकि यात्रा सिर्फ अपने पसंद से नहीं की जाती है इसलिए साथियों के पसंद को भी प्रेफरेंस दिया गया और अंत में कश्मीर के गुरेज घाटी को फाइनल किया गया। 4 साथी जिनमें सबसे पहला मेरा हमेशा से ट्रेवल का साथ ही रहा मेरा कजिन सैफ, उसका ही दोस्त शुभम और एक मेरे बचपन का दोस्त विकास जिसे हम सभी प्रेसिडेंट कहकर ही बुलाते हैं। हम चार लोगों की टोली तैयार हुई। 

तस्वीर मैं आप हम चारों साथियों को देख सकते हैं। बाएं से क्रमशः विकास, उसके बाद शुभम, उसके बगल में लाल टोपी पहने सैफ और आखिर में मैं यानी वलीउल्लाह।

जाने का समय हमने जुलाई में रखा था। मुझे मानसून में पहाड़ों पर जाने का शौक है। इस वक्त पहाड़ पर आपको चारों तरफ हरियाली ही हरियाली देखने को मिलती है जो आपको पहाड़ के सबसे खूबसूरत रूप को दिखाती है।

हालांकि मानसून के समय में पहाड़ों पर जाने के अपने नुकसान भी हैं, सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड का खतरा होता है लेकिन फिर भी मुझे हरे-भरे पहाड़ ज्यादा आकर्षित करते हैं बारिश के बाद पूरी पहाड़ी हरी-भरी हो जाती है। 

हालांकि अगस्त में भी जाया जा सकता है लेकिन कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस के आसपास काफी ज्यादा सिक्योरिटी सख्त होती है कई तरह के मूवमेंट पर रोक होती है इसलिए मैंने जुलाई में ही इस यात्रा को तय किया।

यात्रा गोरखपुर से शुरू हुई और गोरखपुर ही खत्म होने वाली थी। 22 जुलाई की रात में हमें गोरखपुर से निकलना था और 1 अगस्त को हमें वापस गोरखपुर पहुंच जाना था। 

शुरू से ही हमने तय किया था कि यात्रा को बिल्कुल बंजारों की तरह करेंगे और लोकल ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हुए लोकल लोगों की तरह यात्राएं करेंगे, लोकल यानी स्थानीय जायके का स्वाद चखेंगे। यानी यात्रा एकदम देसी स्टाइल में बजट यात्रा होने वाली थी।

पहले एक बार में आप लोगों को रूट बताना चाहता हूं जिससे कि आप समझ सके कि हमने यात्रा का प्लान किस तरह से किया था।

गोरखपुर > दिल्ली> उधमपुर> बनिहाल> श्रीनगर> गुरेज घाटी> तुलैल घाटी> श्रीनगर> जम्मू> गोरखपुर

हम लोगों को ज्यादातर यात्राएं ट्रेन से करनी थी। जो लोग कश्मीर गए हुए हैं उनको पता होगा लेकिन शायद बाकी लोगों के लिए या नई बात हो सकती है कि श्रीनगर तक ट्रेन चलती है। हालांकि बीच में उधमपुर से बनिहाल तक का रेलवे ट्रैक अभी कंप्लीट नहीं हुआ है इसलिए 93 किलोमीटर की यह यात्रा आपको छोटे बसों में या फिर टाटा सुमो से करनी होती है।

इस बीच हमें दिल्ली में ट्रेन चेंज करते हुए जाना पड़ा क्योंकि गोरखपुर से उधमपुर की डायरेक्ट ट्रेन सिर्फ एक थी और वह भी सुबह पहुंचाने की वजह शाम को उधमपुर पहुंचाती थी। 

शाम को उधमपुर पहुंचने का नुकसान यह था कि आप आगे की यात्रा रात में नहीं कर सकते हैं। आपको फिर उधमपुर में रुकना ही पड़ेगा। इसलिए हमने दिल्ली से उधमपुर की ट्रेन ली जिसने हमें सुबह-सुबह उधमपुर पहुंचा दिया और उसी दिन हम वहां से बनिहाल और फिर श्रीनगर की यात्रा कर सकें।

आगे के अंक में आप पढ़ेंगे कि किस तरह से हमारी यात्रा शुरू हुई और हम ने कश्मीर को किस तरह से दिखा।

क्रमशः

रविवार, 13 नवंबर 2022

Part 2 : बनिहाल से श्रीनगर : कश्मीर घाटी में प्रवेश

बनिहाल रेलवे स्टेशन पहुंचते-पहुंचते हमे 2:30 बज चुके थे। लगभग चार-पांच घंटे हम हिचकोले खाने वाली सड़क पर यात्रा कर चुके थे लेकिन थकान का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था। वहां की वादियों में एक अलग ही ताजगी थी। सेब के बागान दिखने शुरू हो गए थे, हिमालय की ऊंची ऊंची पहाड़िया शुरू हो गई थी।

बनिहाल कश्मीर घाटी का एक बड़ा शहर है। बनिहाल बारामुला रेलवे लाइन यहीं से शुरू होती है अतः भारत के किसी भी हिस्से से आने वाले लोग जिन्हें ट्रेन से कश्मीर घाटी में जाना होता है तो यहीं से अपनी यात्रा शुरू करते हैं।

इस ट्रेन में ज्यादातर लोकल लोग ही होते हैं क्योंकि टूरिस्ट या तो फ्लाइट से सीधे श्रीनगर पहुंचते हैं या फिर सड़क मार्ग से श्रीनगर पहुंच जाते हैं। कश्मीर घूमने के लिए श्रीनगर ही बेस पॉइंट है आपको कश्मीर में कहीं भी घूमना है तो आपको श्रीनगर जाना ही होता है कुछ अपवादों को छोड़कर।

क्योंकि रास्ते में हमने कुछ नहीं खाया था इसलिए सोचा था कि बनिहाल रेलवे स्टेशन पहुंचकर वही कुछ खाएंगे। भारत के अन्य शहरों की तरह हमें उम्मीद थी कि रेलवे स्टेशन के पास खाने-पीने की दुकानें होंगी। लेकिन इस मामले में बनिहाल रेलवे स्टेशन पर आप निराश हो सकते हैं क्योंकि वहां खाने पीने की कोई उपलब्धता नहीं है असल में बनिहाल रेलवे स्टेशन बनिहाल शहर से थोड़ी दूरी पर है। मन मार कर हमने वहां पर सेब खरीद लिया औरों से ही काम चला लिया।

बनिहाल रेलवे स्टेशन के गेट पर वहां के लोकल लोग तेजी से भागते दिख रहे थे हमें लगा शायद ट्रेन निकलने वाली है इसलिए लोग भाग रहे हैं। हम भी जल्दी जल्दी पहुंचे और हमने श्रीनगर की टिकट ली। 

श्रीनगर रेलवे स्टेशन को स्थानीय लोग नौगांव के नाम से जानते हैं। हमने जब टिकट लिया तो क्लर्क ने बताया ट्रेन आधे घंटे बाद निकलेगी।  हमने उसी क्लर्क से पूछ लिया अगर ट्रेन आधे घंटे बाद जाएगी तो लोग भाग क्यों रहे हैं अभी से उसने बताया सीट के लिए।
 
तब हम लोगों को माजरा समझ आया। जब हम ट्रेन में पहुंचे तो हमने देखा बैठने की जगह तो छोड़िए खड़े होने की जगह भी मुश्किल से ही मिली भी शायद यही वजह है कि पर्यटक इस ट्रेन से यात्रा नहीं करते हैं। लेकिन स्थानीय लोग बजट में यात्रा करने के लिए इसी ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं। 

लोकल लोगों ने बताया कि लैंडस्लाइड और सुरक्षा कारणों से बार-बार सड़कें बंद होने से भी सड़कों से यात्रा बेहद लंबी हो जाती है लेकिन ट्रेन एकदम समय से पहुंचा देती है।

खैर हम टिकट लेकर ट्रेन में किसी तरह सवार हो गए हमें सीट नहीं मिली। हमें सीट की जरूरत भी नहीं थी क्योंकि हमें कश्मीर देखना था। जब यह बात हमने ट्रेन में यात्रा कर रहे लोकल लोगों को बताया कि हम कश्मीर देखने आए हैं, यहां को सुंदरता देखने आए हैं। तो उन लोगों ने हमें दरवाजे के पास जगह दी और खुद पीछे हो गए, जबकि ट्रेन निकलने के 1 घंटे पहले पहुंचकर उन लोगों ने दरवाजे के पास अपने लिए जगह बनाई थी। यह शायद हमारे यूपी बिहार में कोई नहीं करता। मुझे याद है उस समय एक कश्मीरी लड़के ने कहा था आप हमारे मेहमान हैं आप आगे आइए। शायद इसे ही कश्मीर की मेहमानवाजी कहते हैं।

रास्ते में धान की खेती, सेब के बागान और लकड़ी के घर इतने सुंदर लग रहे थे की जिनका जिक्र शब्दों में मुश्किल है। ट्रेन के हर स्टेशन पर इतनी भीड़ होती थी कि मुझे मुंबई की लोकल ट्रेन की याद आने लगी। यहां भी उससे कम भीड़ नहीं थी। इस ट्रेन में मुझे यूपी बिहार के भी कुछ लोग मिले जो कश्मीर में मजदूरी करने गए हुए थे। वह भी श्रीनगर से बनिहाल या अनंतनाग आने जाने के लिए इसी ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं।

शाम को 5:00 बजे हमारी ट्रेन श्रीनगर (नौगांव) रेलवे स्टेशन पहुंच गई। रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर हमने देखा तो यहां आस-पास कोई आबादी ही नहीं श्रीनगर रेलवे स्टेशन है उधमपुर की तरह शहर से काफी दूर है। यहां बाहर बस सेना के टैंक और कुछ सवारी गाड़ियां दिख रही थी। ट्रेन में लोकल लोगों ने बताया था कि श्रीनगर स्टेशन से बाहर निकलते ही आपको शेयर्ड बस मिल जाएगी जो आपको आसानी से श्रीनगर के सिटी सेंटर लाल चौकी या फिर डल गेट पहुंचा देगी। बाकी किसी के चक्कर में मत पड़ जाएगा वरना ज्यादा पैसे ले लेंगे। 

इसलिए हम लोग एकदम बेफिक्र हो गए थे कि शेयर्ड बस आराम से मिल जायेंगे। लेकिन बाहर निकल कर देखा तो 2 शेयर्ड बसे फुल होकर निकल चुकी थी अब बस प्राइवेट और तो और सुमो खड़े थे। फिर शुरू हुआ मनमाने दाम मांगने का सिलसिला। अंत में हमने एक ऑटो वाले को ₹500 में श्रीनगर रेलवे स्टेशन से डल गेट तक के लिए बुक किया। 

जबकि शेयर्ड बस का किराया ₹20 प्रति व्यक्ति था। यानी जहां काम ₹80 में होना था वहां ₹500 देने पड़े। इस बात का मलाल हमेशा रहेगा। ऑटो वाला हमें लेकर श्रीनगर की तरफ बढ़ चला। श्रीनगर में हमें जगह जगह पर सेना बख्तरबंद गाड़ियां, चेकिंग करते सेना के जवान। हाथों में बंदूक लहराते, खुली जिप्सी पर पेट्रोलिंग करते पुलिस के जवान दिखे। चूंकि भारत के अन्य हिस्सों के लोग इस मिलिटराइज्ड माहौल के अभ्यस्त नहीं होते हैं अतः पहले पहल तो डर लगने लगा। लेकिन ड्राइवर ने बताया यह यहां की सामान्य बात है आप को डरने की कोई जरूरत नहीं है वह अपना काम करते हैं आप अपना काम करिए।

डल गेट से पहले ही हमारे ऑटो वाले का एक बस से एक्सीडेंट भी हो गया। बेचारे ऑटो ड्राइवर के नए ऑटो का आज तीसरा दिन था और उसका ऑटो आगे से पिचक गया। गलती बस वाले की थी और नुकसान ऑटो वाले का हुआ। उल्टे बस वाले ने ऑटो वाले से कुछ पैसे भी ले लिए। हम लोगों ने ऑटो ड्राइवर की मदद करनी चाहिए लेकिन वह कश्मीरी भाषा में आपस में बहस कर रहे थे जो हम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए चाह कर भी हम लोग कुछ ना कर पाए। 

इसके बाद ऑटो ड्राइवर ने हम लोगों को डल गेट के पास एक खूबसूरत से होमस्टे पर छोड़ दिया। इस होमस्टे के बारे में भी हमें उसी ड्राइवर ने बताया था। 

यह होमस्टे मुदस्सिर भाई का था। मुदस्सिर भाई नीचे खुद रहते थे और ऊपर वाले हिस्से को उन्होंने होमस्टे बना दिया था। एकदम डल लेक के किनारे, हमारे कमरे से भी डल की सुंदरता दिखती थी। 

हम लोग वहां पहुंचकर थोड़ा फ्रेश हुए से खिड़की से डल का नजारा देखने लगे। नजारा इतना खूबसूरत था कि हम खुद को रोक ना सके और कपड़े पहन कर पहले निकल पड़े। अगर मैदानी इलाकों में हम इतनी यात्रा करने दो गहरी नींद के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं दिखेगा। लेकिन यह कश्मीर की वादियां हैं और यहां आपको थकान कम ही होती है।  डल लेक बहुत बड़ा लेक है। 60 हजार लोग तो इसके अंदर ही रहते हैं। पर्यटकों के लिए डल गेट के बगल से ही एक रास्ता जाता है जिस पर कई घाट बने हुए हैं और हर घाटों के अलग अलग नंबर है। इसकी तुलना आप मुंबई के मरीन ड्राइव या गोरखपुर के नौका विहार से कर सकते हैं कई किलोमीटर तक आप चलते चले जाइए ना डल झील खत्म होगी ना उसकी सुंदरता कम होगी। 

चलते चलते हम बहुत आगे आ गए फिर हमें याद आया कि हमें इतना ही वापस भी जाना होगा। अंधेरा हो चुका था हम लोग वापस लौटने लगे। एक बात आपको बता दूं कि कश्मीर में सूर्यास्त देर से होता है 7:45 तक तो बिल्कुल उजाला था। लगभग 9:00 बजे हम वापस होमस्टे पहुंचे। 

अब भूख तगड़ी लगी थी। अगर आप उत्तर भारत के हैं तो आपको चपाती खाने की आदत हो सकती है जो आपको कश्मीर में बड़ी मुश्किल से मिलेगी। वहां बस चावल खाते हैं। लेकिन हमारी किस्मत अच्छी थी हमारे होमस्टे के ठीक बगल में ही एक नॉर्थ इंडियन रेस्टोरेंट्स था। वहां हमें शुद्ध ताजा और शाकाहारी भोजन मिला। सब ने छककर खाया और वही डल के किनारे बैठ गए। रात के 11:00 बज गए थे। 

रात में ताल के ऊपर चमचमाती शिकारा इधर उधर आ जा रही थी। ठंडी ठंडी हवाएं एक अलग ही एहसास करा रही थी। वह अलग ही एहसास था। अंत में हम लोग 12:00 बजे के बाद जब आंख खुद ही बंद होने लगी तब बिस्तर पर पहुंचे और जो नींद आई वो सुबह 9 बजे के बाद ही खुली।

जुलाई के महीने में श्रीनगर में मौसम में बहुत ज्यादा ठंडी नहीं होती है जैसे हमारे उत्तर भारत में फरवरी या नवंबर का महीना होता है उसी तरह वहां जून जुलाई-अगस्त में मौसम रहता है यानी रात में ठंड पड़ती है दिन में आप आराम बिना गर्म कपड़ों के और बिना एसी के रह सकते हैं। रात में आप को कंबल की जरूरत पड़ेगी।

क्रमश 

शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

Part 1 : और फिर शुरू हुआ मिशन कश्मीर : गोरखपुर से बनिहाल

21 जुलाई 2022 की रात को मैंने, सैफ ने और शुभम ने गोरखपुर से अपनी यात्रा शुरू की। मिस्टर प्रेसिडेंट (विकास) हम लोगों को दिल्ली से ज्वाइन करने वाले थे। घर से हम सभी खा पीकर आराम से निकले और फिर ट्रेन में जाते ही सो गए।

सुबह आंख खुली तो ट्रेन मुरादाबाद के आगे तक पहुंच चुकी थी लेकिन भारतीय रेलवे के अघोषित नियमानुसार ट्रेन सिर्फ 3 घंटे की देरी से चल रही थी। 

पहले हम लोगों ने तय किया था कि सुबह पहुंच कर दिल्ली भी घूमेंगे क्योंकि हमारे पास पूरे दिन का समय है। क्योंकि आगे उधमपुर की ट्रेन रात 8:00 बजे से पुरानी दिल्ली स्टेशन से थी। लेकिन ट्रेन ने हमें लगभग दोपहर 12:00 बजे आनंद विहार पहुंचाया तो हम लोगों ने अपने दिल्ली घूमने के प्लान में कटौती कि और सबसे पहले भूख मिटाने की व्यवस्था में जुट गए। 
आनंद विहार 

दिल्ली को जायके का शहर कहा जा सकता है। हालांकि मैंने सुना है इंदौर खाने-पीने के मामले में दिल्ली से बेहतर है लेकिन मुझे दिल्ली भी कहीं से कम नहीं लगता है। 

दिल्ली उतरकर हमने छोले भटूरे का स्वाद लेने का मन बनाया। दिल्ली में मेरे सबसे फेवरेट छोले भटूरे मिलते हैं पहाड़गंज में सीताराम दीवान चंद छोले भटूरे। छोले भटूरे के शौकीनों के लिए यह बड़ा नाम है। हम ट्रेन से आनंद विहार उतरने के बाद थोड़ा फ्रेश हुए फिर पहुंचे पहाड़गंज छोला भटूरे खाने।

सीता राम दीवान चंद छोले भटूरे की दुकान

मैं तो यहां पहले कई बार खा चुका हूं लेकिन मेरे बाकी साथियों के लिए यह नई जगह थी। लेकिन टेस्ट ने उन दोनों को भी निराश नहीं किया और दो भटूरों में ही सारा भूख रफूचक्कर हो गया।
सीताराम दीवान चंद के छोले भटूरे 

अब हमारे पास 5-6 घंटे बचे हुए थे लेकिन हम कहीं दूर घूमने नहीं जाना चाहते थे। क्योंकि दिल्ली का ट्रैफिक कहां फंसा दे और आपकी ट्रेन मिस हो जाएं यह रिस्क भला कौन लेने जाए! कश्मीर के जन्नत को छोड़कर इस दिल्ली के ट्रैफिक जाम में कौन फसना चाहे।

अतः हमने तय किया कि यहां से सीपी चलेंगे। फिर हम लोगों ने थोड़ा सीपी का चक्कर लगाया और फिर पहुंचे चांदनी चौक। चांदनी चौक अगर आप पिछले 3-4 सालों में नहीं गए हैं तो जाइए, चांदनी चौक एकदम बदल गया है, एकदम चकाचक हो गया है। 

चांदनी चौक

यहीं बगल में कैमरे के शौकीनों के लिए सबसे बड़ा मार्केट कूचा चौधरी मार्केट भी है, जहां से मैंने अपने कैमरे के कुछ असेसरीज खरीदे। हालांकि चांदनी चैक तो दुनिया के सबसे बड़े मार्केट में से एक है। यहां आपको हर चीज मिल सकती है, बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी।

चूंकि पुराना दिल्ली रेलवे स्टेशन, चांदनी चौक और जामा मस्जिद आसपास ही है तो उसके बाद हम 3 तीनों पहुंचे जामा मस्जिद। लाला किला भी सामने था लेकिन वो स्वतंत्रता दिवस की तैयारी के लिए बंद हो जाता है 1 महीने पहले ही, तो वहां का प्लान भी कैंसिल करना पड़ा। हालांकि मैं तो दिल्ली लाल किला कई बार जा चुका हूं लेकिन साथियों का मन था। अब जब जामा मस्जिद पहुंच ही गए हमने सोचा क्यों ना डिनर में थोड़ा पुरानी दिल्ली के स्वाद का तड़का लगाया जाए।


उसके बाद थोड़ा-बहुत जामा मस्जिद में समय बिताने के बाद लगभग 6:00 बजे हम पहुंचे पुरानी दिल्ली मटियामहल के अल यामीन रेस्टोरेंट्स। यहां मैं पहली बार गया था चूंकि मेरे कजिन सैफ को पुरानी दिल्ली के नॉनवेज का जायका लेना लेना था जिसके बारे में उसने बहुत सुन रखा था। हालांकि यह बात सही भी है कि नॉनवेज खाने वालों के लिए पूरे नार्थ इंडिया में लखनऊ अमीनाबाद और पुरानी दिल्ली मटियामहल से बेहतर शायद ही कोई जगह हो।

अलयामीन में हमने नॉन वेज प्लैटर की जो दावत उड़ाई वह ताउम्र याद रहेगी। चूंकि शुभम एक माह के लिए शाकाहारी था क्योंकि सावन का महीना चल रहा था अतः उसके लिए अलयामीन में ही शाकाहारी प्लैटर की भी व्यवस्था थी। 



खाने के बाद शुभम को ‘मोहब्बत का शरबत’ भी पीना था फिर उसकी भी तलाश पूरी हुई और सैफ और शुभम ने मिलकर मोहब्बत का शरबत भी चखा। मेरे पेट में अब तनिक भी जगह नहीं थी अतः आज के दिन खाने पीने पर विराम लगा दिया गया।

अल यमीन का फेमस नॉनवेज प्लैटर

यहां हम लोगों को खाते पीते 7:15 बज गए। जब घड़ी पर नजर गई तो फिर भाग कर हम लोग पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां पर मिस्टर प्रेसिडेंट पहले पहुंच कर है सभी का इंतजार कर रहे थे। अब उन्होंने भी आधिकारिक रूप से इस यात्रा को ज्वाइन किया और हम लोग ट्रेन में जाकर अपना-अपना बर्थ पकड़ कर सो गए। दिनभर की थका देने वाली यात्रा के बाद हिचकोले खाते ट्रेन में जो नींद आई वो जम्मू जाकर ही खुली। 

जब नींद खुली तो सबके फोन से नेटवर्क गायब हो चुके थे। यह इस बात की तस्दीक थी कि हम जम्मू कश्मीर में प्रवेश कर चुके हैं। ट्रेन के विंडो से छोटी छोटी पहाड़ियां और जगह जगह झरने दिखने लगे थे। ट्रेन पहले जम्मू पहुंची फिर उधमपुर। 
उधमपुर रेलवे स्टेशन 

उधमपुर हमसब लगभग 9 बजे पहुंचे। उधमपुर का रेलवे स्टेशन एकदम शहर से बाहर है। कोई आबादी नहीं स्टेशन के पास। ट्रेन से उतरकर हम लोग बाहर निकले थोड़ी दूर पर किसी तरह एक मिनी बस मिल गई जो एमएच चौक तक हमें ले गई। 

एमएच चौक का पूरा नाम मिलिट्री हॉस्पिटल चौक है। यहीं से बनिहाल या फिर रामबन के लिए सवारीगाड़ी मिलती हैं। यह सवारी गाड़ी टाटा सुमो भी हो सकती है और बस अथवा टेंपो ट्ररवेलर भी।
 एमएच चौक

उधमपुर उतरने के बाद पहली बार मैंने इतना हैवी मिलिटराइज्ड एरिया देखा। जगह-जगह सेना के जवान बंदूक लिए खड़े थे, बड़ी-बड़ी बख्तरबंद गाड़िया सड़कों पर दिखाई दे रही थी।

एचएम चौक पर ही हम पेड वासरूम की सुविधा उपलब्ध है वहीं हम लोगों फ्रेश हुए, चाय पी और टेंपो ट्रेवेलर में सवार होकर बनिहाल के लिए निकले। उधमपुर में उम्मीद के अनुसार बनिहाल के लिए ज्यादा साधन नहीं उपलब्ध है। पूछने पर लोगों ने बताया कि कश्मीर जाने वाले जम्मू से ही डायरेक्ट बनिहाल चले जाते हैं। बहुत कम लोग उधमपुर आते है।

खैर उधमपुर से यात्रा शुरू हुई। इस यात्रा एनएच44 पर होती है। चुकी उसी समय अमरनाथ यात्रा चल रही थी इसलिए हम लोगों को रास्ते में कॉनवाय के गुजरने तक का एक घंटे इंतजार करना पड़ा। फिर आगे लैंड स्लाइड में भी हम लोग थोड़ी देर फंसे रहे। धीरे धीरे चलते चलते 2 बजे हम लोग बनिहाल पहुंच ही गए।

बनिहाल रेलवे स्टेशन